
स्कूल शिक्षा का मंदिर होता है लेकिन प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा को शुद्ध व्यापार बना दिया है। प्राइवेट स्कूल अब मुनाफाखोरी के अड्डे बन चुके हैं जिसमें सब्जीमंडी की तरह हर चीज बिकाऊ है और प्राइवेट स्कूलों का एक ही मंत्र है- जितना लूट सको, लूट लो।
सीबीएसई के नवीन शैक्षणिक सत्र की शुरुआत एक अप्रैल से हो चुकी है। नया सत्र शुरू होते ही पालकों को उन किताबों की सूची थमा दी गई है, जिनका अध्ययन इस सत्र में छात्र करेंगे। हर साल की तरह इस सूची में एनसीईआरटी के अलावा प्राइवेट पब्लिशर्स की भी किताबें शामिल हैं, जिनकी कीमतें एनसीईआरटी की तुलना में कई गुना अधिक है। लेकिन ठहरिए…। इस बार निजी स्कूल सिर्फ किताबों तक ही नहीं ठहरे बल्कि उन्होंने यह भी तय कर दिया है कि छात्र किस कंपनी की कॉपियों में लिखेंगे। इसके लिए बकायदा पालकों को निर्देश भी दिए गए हैं।
दरअसल, यहां भी पूरा खेल कमीशन का है। निजी कंपनियों से मिलने वाले कमीशन के चलते पालकों को कॉपी विशेष ही खरीदनी पड़ रही हैं। जिन कंपनियों की कॉपियां खरीदने के लिए पालकों को कहा गया है, उनमें क्लासमेट, डोम्स, नवनीत शामिल हैं। ये सभी कंपनियां छग से बाहर की हैं। छत्तीसगढ़ के लोकल फर्म द्वारा प्रकाशित की जाने वाली कॉपियों की तुलना में ये 20 से 30 प्रतिशत तक महंगी हैं। इसका भार भी पालकों पर पड़ने लगा है। स्थानीय स्तर पर जो कंपनियां कॉपियां बनाती हैं, उनमें गुरुनानक, नोटबुक सहित अन्य शामिल हैं।
कॉपियों में भी स्कूल का लोगों
नरदहा और बैरनबाजार स्थित कई बड़े निजी विद्यालयों स्थित मोवा और विधानसभा मार्ग में आने वाले स्कूलों में भी खास तरह की कॉपियां अनिवार्य हैं। इन कॉपियों में स्कूलों के नाम और लोगो होते हैं। इन्हें भी ब्रांडेड कंपनियां स्कूलों से मिले ऑर्डर पर बनाती हैं। इस पर भी अजीब तथ्य यह है कि इन कॉपियों में जिल्द चढ़ाना विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य होता है। ये जिल्द भी स्कूलों के नाम वाले होते हैं, जिन्हें विशेष तौर से तैयार करवाया जाता है।
172 पेज की ब्रांडेड कंपनी 60 रुपए, लोकल फर्म दे रही 45 रुपए में
राज्य के बाहर की ब्रांडेड कॉपियां 20 प्रतिशत से अधिक दाम में दी गई। इसके उलट लोकल फर्म की कॉपियां उसमें लिखी गई एमआरपी से कम दामों में दुकानदारों ने दी। बाहरी ब्रांड की 172 पेज की कॉपी के लिए 60 रुपए चुकाने पड़े, जबकि इतने ही पेज की लोकल फर्म की कॉपी 45 रुपए में दुकानदारों ने दी। जब इनकी गुणवत्ता जांची गई तो 19-20 का ही फर्क नजर आया। मजेदार बात यह है कि कम कीमत होने के बाद भी लोकल फर्म की कॉपियों के पेज अधिक मोटे रहे, जो जेल पेन की लिखावट से भी खराब नहीं होते हैं।




